नई पीढ़ी को सनातन के मूल्यो, आदर्शों एवं परंपराओं से जोड़ने के लिए ही बनाया गया है पुरोहित संघ।
पुरोहित ऐसी परंपरा है, जो सनातन धर्म को देती आ रही है ऑक्सीजन। जिससे पैदा होता है एक आदर्श समाज-एचबी जोशी।
चंपावत। सनातन हिंदू परंपराओं व मान्यताओं में पड़ती जा रही पाश्चात्य संस्कृति की छाया का ही प्रभाव है कि आज सनातनी लोग अपने आचार,विचार व संस्कारों से विमुख होते जा रहे हैं। इसका कारण पुरोहित परंपरा के विलुप्त होने या पुरोहितों का अभाव होना है। इस बात को देश विदेश का व्यापक भ्रमण करते आ रहे रेलवे कॉरिडोर के एमडी, देवीधुरा के समीप “वारी गांव” के पुरोहित परिवार में जन्मे यहां के पहले सिविल सर्विस में चयनित हीरा बल्लभ जोशी ने ऐसा एहसास करते हुए “हिंदू पुरोहित संघ” नाम से एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया है। जो संस्कार व कर्मकांड से नई पीढ़ी को जोड़कर उनका ऐसा संवेदनशील व्यक्तित्व तैयार करना है, जो सनातन की गरिमा, मर्यादा, प्रवृत्ति व संस्कृति की डोर में उन्हें बांध सके। पुरोहित परंपरा सनातन हिंदू धर्म के लिए ऑक्सीजन का कार्य करती है। श्री जोशी द्वारा सनातन परंपराओं पर कई पुस्तके भी लिखी गई है। इनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है यह पुस्तके हर घर के पूजा स्थल में अपना स्थान बनाए हुए हैं। उनका कहना है कि चाहे देश के बड़े शहर हो या विदेश में, पहले सनातनी एवं उत्तराखंडी लोग अपने बच्चों का शादी विवाह, नामकरण, पूजा पाठ, कर्मकांड आदि कार्यक्रम अपने पुरोहित से ही करना चाहते हैं। ऐसे लोगों के लिए पुरोहित नाम से एक मोबाइल एप्लीकेशन तैयार की गई है। जिसमें पंजीकरण कराने पर उन्हें पुरोहित की पूरी जानकारी मिल जाएगी। इसके जरिए चाहे आप अमेरिका में है या घर बैठे वर्चुअली कथा श्रीगणेश पूजन या अन्य कर्मकांडो को करा सकते हैं। यही नहीं सही जानकारी मिलने पर दिल्ली, मुंबई, आदि स्थानों से यजमान, पुरोहितो को घर बुलाएंगे। पुरोहित संघ की एक आचार संहिता भी बनाई गई है। बसंत बिष्ट को पुरोहित परंपरा को पुर्नजीवित करने का पहला ध्वजवाहक बनाया गया है। श्री जोशी का कहना है कि सनातन परंपरा में संस्कृत भाषा का उतना ही महत्व है कि वह व्यक्ति को मान और सम्मान से जीने का अवसर देती है। भले ही अंग्रेजी की जानकारी रखने वाला भूखा रह सकता है लेकिन संस्कृत भाषा उसे कभी भूखा नहीं रहने देती है।
फोटो_ हीरा बल्लभ जोशी।

