पंचायतीय चुनावों के परिणाम आते ही प्रत्याशियों के बदलने लगे तेवर।
हार पर मंथन के बजाए मतदाताओं पर फोड़ रहे हैं ठीकरा। यहां तक कि मतदाताओं पर खूब तंज भी कसे जा रहे हैं ।
लोहाघाट: पंचायती चुनावों के परिणाम आते ही विजेता प्रत्याशियों के हाव-भाव और बोलचाल के तौर तरीकों पर भी बदलाव साफ दिखने लगा है। चुनाव से पूर्व जो प्रत्याशी दीदी, बैनी, ताई, दादा दादी का आशीर्वाद लेने उने चरणों में नतमस्तक हो रहे थे अब वे जीतते ही एका एक नदारत हो चुके हैं। मैदानी क्षेत्रों से पहुंचे मतदाता भी पुनः अपने कमकाज के लिए लौट चुके हैं। गांव-घरों में सन्नाटा है। अपनी हार पर प्रत्याशी मंथन के बजाए मतदाताओं पर ही ठीकरा फोड़ रहे हैं। यहां तक कि प्रत्याशी मतदाताओं पर खूब तंज कसते नजर आ रहे हैं। चुनाव में असफल प्रत्याशी अपने सगे-संबंधियों की तुलना विभीषण से करने से भी नहीं चूक रहे हैं। कई जगहों पर छोटे-मोटे मारपीट के मामले भी आए हैं। इस चुनाव में खास बात यह रही जिन महिला प्रत्याशियों ने जीत हासिल की उनमें अधिकांश महिलाएं मतगणना स्थल पर आई ही नहीं। ऐसे में उनकी जीत पर उनके समर्थकों द्वारा प्रत्याशियों के पतियों का स्वागत फूल मालाओं से होना लाजमी है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि महिला आरक्षण कागजों तक सीमित है। खासकर पंचायत चुनाव में तो जो महिलाएं चुनावी मैदान में हैं उन्हें विभागीय कम काज की जानकारी होती ही नहीं है और वे घर-ग्रस्ति पर ही व्यस्त रहती हैं। यहां तक कि किसका कम करना है और काम नहीं, क्या काम होना है और क्या नहीं? यह सब भी उन्हें पता नहीं रहता। आश्चर्य तो तब होता है जब कई प्रत्याशियों को ब्लॉक, तहसील के उच्च अधिकारियों नाम और कौन सा काम कहां से होता है? ये भी नहीं जानती। अब देखना होगा कि सरकार आने वाले समय में सरकारी काम-काज हेतु घर से सदन तक लाने के मिशन में कितनी कारगर होगी।
फोटो: जीत के बाद एसे जश्न मनाते लोग।


